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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

7. छोटा मुंह बड़ी बात 
यह कहानी एक मुहावरा छोटा मुंह बड़ी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है । 

एक बार एक साहूकार था । वह गरीब लोगों को पैसे उधार देकर उनकी मदद करता था । पुराने जमाने में वह एक तरह से बैंक का काम करता था । समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । वह किसान, मजदूर , छोटे व्यापारियों को ब्याज पर पैसे उधार दिया करता था । यही उसका व्यवसाय था । 

एक दिन एक किसान हरकू उसके पास आया और उसने साहूकार से 5000 रुपए उधार मांगे । साहूकार ने इतनी बड़ी रकम उधार मांगने का कारण पूछा तो उसने कहा 
"मैं इस रकम से दो बैल और एक हल लाऊंगा जिससे मैं न केवल अपने खेत जोत पाऊंगा अपितु औरों के खेत भी जोत सकूंगा । इस तरह मैं अपने परिवार की आय बढ़ा सकूंगा और लोगों को सेवाऐं भी दे सकूंगा" ।

साहूकार को हरकू की बात अच्छी लगी । सबसे बड़ी बात यह थी कि हरकू यह रकम शादी ब्याह जैसे खर्चे के लिए नहीं ले रहा था अपितु अपनी आमदनी बढाने के लिए ले रहा था । साहूकार ने उसे 5000 रुपए उधार दे दिये । हरकू ने इस रकम को दो साल में लौटाने का वचन दे दिया । 

दो साल का समय कोई बहुत ज्यादा नहीं होता है । निर्धारित अवधि व्यतीत हो जाने पर भी जब हरकू पैसे वापस लौटाने नहीं आया तब साहूकार को थोड़ी चिन्ता हुई । उसे हरकू का वह मासूम चेहरा याद आ गया जब वह उससे 5000 रुपए लेने के लिए आया था । जब आदमी को पैसे की जरूरत पड़ती है तब वे कैसे दीन हीन नजर आते हैं और कितनी अनुनय विनय करते हैं । अपने मतलब के लिए तो लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं । लेकिन काम निकल जाने के बाद वे उन्हें दूध में गिरी मक्खी की तरह बाहर निकाल कर फेंक देते हैं । साहूकार को भी लगने लगा कि हरकू को इतनी बड़ी रकम देकर उसने गलती कर दी है । पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।

 साहूकार हरकू के घर की ओर चल दिया । यह जमाने का दस्तूर है कि उधार मांगने के लिए कर्जदार खुद चलकर साहूकार के पास आता है पर वसूली के लिए साहूकार को ही चलकर कर्जदार के पास जाना पड़ता है । साहूकार सोच रहा था कि आखिर हरकू जमाने की रीत ही तो निभा रहा है, कोई पृथक काम तो नहीं कर रहा है । वह सोचता हुआ हरकू के घर पहुंच गया । 

हरकू के घर पर कोई नहीं था । एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई थी जो खेल रही थी और बीच बीच में चूल्हे पर रखे भात को देख भी रही थी । साहूकार ने इधर उधर चारों ओर देखा मगर उसे उस बच्ची के सिवाय और कोई नजर नहीं आया । अंत में उसने उस बच्ची से पूछा 
"तुम्हारा नाम क्या है बेटा" ? 
"जी, मेरा नाम मुनिया है" । बच्ची ने बड़ी मासूमियत से कहा 
"और तुम्हारे पिता का क्या नाम है" ? 
"जी, मेरे पिताजी का नाम श्री हरक सिंह है" 

अब साहूकार को यकीन हो गया कि यह बच्ची हरकू की ही है इसलिए उसने आगे पूछा 
"तुम्हारे पिताजी कहां हैं, बेटी" ? 

इस सवाल पर मुनिया खामोश रही । साहूकार ने फिर से वही सवाल पूछा तो मुनिया बोली 
"अब आपको क्या बताऊं साहूकार जी कि मेरे पिताजी कहां हैं ? मैं कुछ बताऊंगी तो आप उसे छोटा मुंह बड़ी बात तो नहीं कह देंगे ना" ? 

साहूकार उसके बड़े लोगों की तरह बात करने से खुश हो गया और बोला "अरे नहीं बेटी, आप तो बेझिझक कहो जो कहना है । कहां हैं आपके पिताजी" ? 
"जी, वे स्वर्ग का पानी रोकने गये हैं" 

साहूकार कुछ समझा नहीं फिर भी उसने पूछा 
"और तुम्हारा भाई" ? 
"वे बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं" । 

इन दोनों सवालों का जवाब सुनकर साहूकार बड़ा आश्चर्य चकित हुआ । छोटी सी मुनिया किसी पहेली सी नजर आ रही थी । साहूकार ने फिर पूछा 
"तुम्हारी मां कहां है" ? 
"वह एक का दो करने गई है" 

साहूकार इस जवाब से और भी आश्चर्य चकित हुआ और उसने फिर पूछा 
"अच्छा तो तुम घर में बैठकर क्या कर रही हो" ? 
"जी, मैं अपना भविष्य देख रही हूं" । 

इस जवाब से साहूकार चौंक पड़ा । चारों सवालों के जवाब बड़े गूढ़ थे जो उसकी समझ से परे थे । छोटी बच्ची ने सही कहा था कि छोटा मुंह बड़ी बात तो नहीं लगेगी ना ? वास्तव में यही लग रहा था साहूकार को । उसने मुनिया से कहा 
"बेटी, आपने जो जवाब दिए हैं उनका मतलब समझ में नहीं आया है मुझे । यदि तुम इनका मतलब समझा दो तो मैं तुम्हें मुंहमांगा ईनाम दूंगा । बताओ क्या ईनाम चाहती हो" 
"आप सही में ईनाम देंगे" ? एक छोटे से चेहरे पर अविश्वास के भाव थे । 
"बिल्कुल, जो मांगोगी वही मिलेगा । अब बताओ" । 
"क्या आप अपना कर्ज और ब्याज दोनों माफ कर देंगे" ? 
"हां कर दूंगा । अब तो जवाब दो" । साहूकार उन सवालों के जवाब का अर्थ समझने के लिए बेताब था । 
"मैं आज जवाब नहीं दे सकती हूं, कल दूंगी । आप कल इसी समय आना" । 
साहूकार के पास और कोई विकल्प नहीं था । वह मन मसोस कर चला गया । 

अगले दिन साहूकार फिर हरकू के घर गया । वहां पर मुनिया खेल रही थी । उसने कहा "अब बताओ बेटी उन जवाबों का अर्थ" । 
"आपको अपना वचन याद है ना" ? 
"हां, याद है । मैं अपना सारा कर्ज माफ कर दूंगा । अब तो बताओ" । 
"ठीक है" । कहकर वह घर के अंदर गई और सब घरवालों को बाहर बुला लाई । तब उसने कहा 
"आपने पहला प्रश्न पूछा था कि मेरे पिता कहां हैं तब मैंने कहा था कि वे स्वर्ग का पानी रोकने गये हैं । इसका मतलब यह है कि हमारे घर की छत टूटी हुई थी । इस टूटी हुई छत में से बरसात का पानी आता था जिससे हम लोग इस घर में रह नहीं पा रहे थे । बरसात का पानी आसमान से आता है और स्वर्ग भी आसमान में ही होता है इसलिए बरसात का पानी स्वर्ग का पानी होता है जिसे रोकने के लिए अर्थात घर की मरम्मत करने के लिए मेरे पिता ऊपर छत पर गये हुए थे" ।
"अरे वाह ! बहुत अच्छे से बताया है तुमने तो । अब दूसरे प्रश्न के जवाब के बारे में बताओ" । साहूकार ने कहा 
"दूसरा प्रश्न था कि भैया कहां हैं ? तब मैंने कहा था कि वे बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं । इसका मतलब है के वे रेंगनी या भटकटैया के कांटों वाले पौधों को काटने गये हैं । झगड़े में कपड़े फटते हैं और रेंगनी के कांटों के कारण भैया के भी कपड़े फटने निश्चित थे जबकि वे कोई झगड़ा करने नहीं गये थे इसलिए मैंने कहा था कि वे बिना झगड़ा के भी झगड़ा करने गये हैं । अब समझ में आया" ? 
"बिल्कुल आ गया है बिटिया । अब तीसरे प्रश्न के जवाब का भी मतलब समझा दो" । 
"तीसरे सवाल में आपने पूछा था कि मां कहां हैं ? तब मैंने कहा था कि मां एक का दो करने गई हैं । इसका मतलब है के वे चने पीसकर दाल बनाने गई थीं । एक चने से दो दाल बनती है न इसलिए मैंने कहा था कि वे एक से दो करने गई हैं" । 
"बहुत बढिया । बहुत बुद्धिमान हो बिटिया तुम । अब चौथे प्रश्न के जवाब का भी मतलब समझा दो" 
"चौथे प्रश्न में आपने पूछा था कि मैं क्या कर रही हूं तब मैंने कहा था कि मैं अपना भविष्य देख रही हूं । तब मैं चूल्हे पर भात पका रही थी । भात पका है या नहीं यह जानने के लिए चावल के कुछ दाने देखकर मैं निर्णय कर रही थी कि भात पका है या नहीं । अगर भात जल जाता या कच्चा रह जाता तो मां मेरी पिटाई करती । वह मेरा भविष्य था इसलिए मैंने ऐसा कहा था" 
"बहुत बढिया बेटी । पर एक बात समझ में नहीं आई कि ये बात तो तुम मुझे कल ही बता सकती थी, फिर आज क्यों बुलाया" ? 
"यदि मैं कल ही बता देती तो आप कल ही कर्जा माफ कर देते । फिर मैं जब यह बात मां पिताजी को बताती तो मेरी बात पर कोई विश्वास नहीं करता । आज सबके सामने यह बात बता रही हूं इसलिए अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है" । 

साहूकार उस नन्ही सी बेटी की बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसकी पढ़ई लिखाई की संपूर्ण व्यवस्था कर दी । "छोटा मुंह बड़ी बात" मुहावरा सिद्ध हो गया था । 

श्री हरि 
14.1.23 
 

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

16-Jan-2023 08:39 PM

बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jan-2023 11:27 PM

बहुत बहुत आभार मैम

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Mahendra Bhatt

14-Jan-2023 03:18 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

15-Jan-2023 03:46 PM

बहुत बहुत आभार आदरणीय 💐💐🙏🙏

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